एक शाम कभी ऐसी हो,
जहा बिते दिन की कोई बात ना हो,
बस में, ओर मेरे साथ सिर्फ तुम हो,
और दूर कोने में ढलता सूरज हो ।
हम दो , दो नहीं एक हो
फिर भी हमारे सर पे,
अपना अपना आसमां हो।
अपने अपने टैरो से भरा पड़ा,
कहीं चांद तो कहीं सूरज चमकता हुआ,
हमारी आंखों में ख़ुद के सपने हो,
और हम एक दूसरे का हाथ थामे हुए,
देखें दूर ढलते सूरज को ।
इक दूसरे के आसमां के उस पार,
बस देखे अपने आप को,
काश कभी इक शाम ऐसी भी हो ।
– हेमिन पटेल