आज रविवार का दिन है । आम दिनों के तरह ये दिन भी सब दिनों की तरह ही हैं। राजकोट ट्रांसफर हुए आज छह महीने हो गए है । राजेश कल ही उनकी आफिस के काम से इंदौर गये है। उनका इस तरह अचानक बहार चले जाना मेरे लिए अब आदत बन चुका है । मुझे किताबें पढ़ना और गुजराती फिल्मे देखना बहोत पसन्द है में।आर्ट्स में मास्टर्स किया है मेने । बडा बेटा एम.बी.ए की पढ़ाई के लिए केनेडा गया है और छोटी बेटी फेसन डिज़ाइनिंग के कोर्स के लिए अहमदाबाद । दोनों वही होस्टल में रहते है । दोनों को इस तरह अकेले छोड़ने का बिलकुल मन नही था पर ,उनकी इच्छा के आगे मेरी इच्छा कोई मायने नही रखती । ऍम.बी.ऐ और फेसन डिज़ाइनिंग यहाँ राजकोट मै भी हो सकता था । ख़ैर छोड़ो…
राजेश घर पर नही थे तो सोचा घर की सफाई कर लु। कुछ अखबार और मैगज़ीन हाथ लगी सफाई करते वक़्त उसीके अंदर से मेरी कविता की डायरी मिली धुल जमी हुई और पानी से भीगने के कारण शाही के धब्बे वाली । डायरी खोली और मेरी लिखी हुई कुछ कविताये मेने पढ़ी । कविता पढते पढते जेसे आवाज सुनाई दी हो ” यार ! रिद्धि तुम्हारी ये बड़ी बड़ी कविता ए पढनेका मेरे पास बिलकुल टाइम नही है ,ऑफिस का काम करु या तुम्हारी ये बड़ी बड़ी कविताये पढू ” और एक आवाज़ सुनाई दी ” क्या मम्मी ,कितनी ओल्ड टाइप कविता लिखी है। निंद आ जायेगी ऐसी कविताए पढ़कर ” ये सब आवाज़ सुन कर मेने वो डायरी बंद करदी जैसे पहले कर दी थी । साफसफाई के बाद वो डायरी मेने वही रख दी जहा वो पहले पड़ी थी । सारे काम पताकर बाथरूम मे नहाने गयी और निकलकर रोज की तरह सादा ड्रेस पहनकर चाय का कप लेकर बालकनी मे गयी ओर कुर्शी पर बैठकर सुबह आया हुआ अख़बार पढ़ने लगी । लगभग आधा अख़बार पढ़ा और सातवे पेज पर विज्ञापन देखा के आज छह बजे महावीर कैफे मे ओपन माइक कॉम्पिटेसन हें जिसमे आप अपनी कोई भी कवीता सब के सामने प्रस्तुत कर सकते हें। दो पल सोचा कि आज वो डायरी मिलने का कारन यह तो नही ? आखिर मे जाने का सोचा । महावीर कैफे मेरे घर से लगभग तीन कि.मी दूर होगा । दोपहर के दो बज रहे थे। मेने जल्दी से अपनी वो कविता की डायरी निकाली और सोचेने लगी कोनसी कविता में वहां जाकर सबके सामने सुनाउ ?? थोडी देर बाद मेरी मनपसंद कविता चुंन ली ओर थोड़ी देर मेरी ही कविताये पढ़ने लगी और देखते ही देखते चार बजे गये । अलमारी खोली और साड़ी ओ का ढगला निकाला । ढगले के नीचे दबी हुई मेरी मनपसंद साड़ी देखि और निकाली । सबसे आखिर में होने के कारण बोहत सारी करचलिया हो गयी थी । साडी को देखते देखते बहोत सारी अपने लोगो की आवाजें याद आयी ” मम्मी ये साडी में तुम भेंश जैसी देखती हो ” और “मम्मी ये साडी पहनेगी तो मैं तेरे साथ नही आउंगी ” पर आज ये सब कहने वाला कोई नहीं था । जल्दी से साडी को इस्री से ठीक किया और पहन ली ।
घर को लोक करके हाथ में डायरी लेके अपनी स्कुटी लेके निकल गयी महावीर कैफे । कॉम्पिटेसन शुरू होने के आधे घंटे पहले ही में वह पहोच गयी। थोड़ीदेर बाद कॉम्पिटेसन शुरू हुआ मेरे जैसे बहोत लोग आये थे वहां । मेने टोकन ली और मेरा तेरवा नंबर आया । थोड़ी देर बाद मेरी बारी आई मेने अपनी कविता सबको सुनाई और तालियों की आवज मेरे सामने बरस पड़ी और ये सब देख कर में बहोत ख़ुश हो गयी क्योंकि पहेली बार ऐसा देखा कि मेरी कविता मेरे आलावा किसीको पसन्द आयीं। मे स्टेज के निचे उतरी और थोड़ी देर बैठी । अचानक एक अंजान चहेरा मेरे सामने आया अंदाज से उम्र में बीस साल का और बोला ” क्या मुझे एक ऑटोग्राफ मिल सकता है ” मे आश्चर्य से उसकी और देखने लगी और उसे ऑटोग्राफ दी और फिर से उसने मुझे बोला, “क्या मैं आपके साथ एक फोटो ले सकता हु ?” मेने उसकी ये इच्छा भी पूरी करदी पर मेरे मनमे एक सवाल था “तुमने ये ऑटोग्राफ और फोटो क्यों ली ?, ” जवाब में उसने बोला बस ऐसे ही मुझे अच्छा लगता है ये सब ” और वो जाने लगा । पर उसका ये जवाब मुझे सच नही लगा । मेने फिर से उसे बुलाया और गुस्से से पुछा ,” सच बताओ क्यु लिया ये सब ? ” और उसने मुझे जवाब दीया ,” बात ये है कि मुझे आपकी ये कविता बहोत पसंद आयी तो मैने आपकी ऑटोग्राफ ली और उससे भी ज्यादा मुझे आपकी ये साडी बहोत पसंद आयी क्योंकि इसमें आप किसी अदाकारा से कम नही लग रहे ” में दो पल देखती रही उसे।
– धीरेन जादव