तेरे दूर जाने का ज़हर पी गया था,
हैरत में हूँ कि मैं फिर जी गया था!
उन्हीं गलियों में खुदको ढूँढ़ता हूं,
जिन गलियों में मैं कभी गया था!
कोई था जो मेरे ही लिए लडा था,
कोई था जो मेरे होंठ सी गया था!
ना जाने की फिराक़ में था मैं तो,
ना जाने क्यों मैं फिर भी गया था।
जन्नत की बातें करता है तू अक्ष,
करता भी ऐसे जैसे अभी गया था!
– अक्षय धामेचा