मै हकीकत से रूबरू नहीं हुआ था |
की यहां ज्यादा प्यार करना भी गुनाह था |
मुझे लगता रहा मै तो प्यार बांट रहा था |
पर क्या पता था कि सामने वाले शख्स को तो मेरे प्यार की जरूरत ही नहीं थी |
मै हकीकत से रूबरू नहीं हुआ था |
की किसी की फिक्र करना जरूरी नहीं था |
मुझे लगता रहा हर वक्त की में तो अपना फ़र्ज़ निभा रहा था |
पर क्या पता था कि मेरी फिक्र तक से किसी को घुटन हो सकती थी |
मै हकीकत से रूबरू नहीं हुआ था |
की हर बार यूं झुक जाना भी अच्छा नहीं था |
मुझे लगता रहा कि में रिश्ता बचा रहा था |
पर क्या पता था कि बचाने की आस दोनों को होनी चाहिए,
रिश्ता जो दोनों तरफ से था |
मै हकीकत से रूबरू नहीं हुआ था |
की यहां ज्यादा बोलने वाले को पागल समझा जाता था |
मुझे लगता रहा मै तो कुछ पल खुशी के ढूंढ़ रहा था |
पर क्या पता था कि में तो मुर्दों की बस्ती में सांस बेच रहा था |
– फोरम जोशी