एक अकेली थी वो सो पे भारी।
बेटा बनने की थी पूरी तयारी।।
फिरभी उसको विदा कर दिया।
आखीर एक बाप ने अपना फर्ज ही अदा किया।।
बनके तो आई थी वो राजा की रानी।
पर राजा को मिल गयी वनसवारी।।
पर साथ न उसने पति का छोड़ा।
वनवास में भी टूटने न पाया जोड़ा।।
दैत्य भी लगा न पाया हाथ।
ऐसा था जानकी का ठाठ।।
जिसके लिए पूरा लंका काण्ड रचाया।
राघव ने तो उसको पा कर भी खो दिया।।
पावन थी वो फरिश्तो के जैसी।
फिर भी आवाम ने ली उसकी कशौटी।।
थक गयी अंत में किस्मत के खेल से।
वापस जा बसी माँ के आँचल में।।
पर अब वक्त ने अपनी करवट बदल ली है।
छुपने की नही लड़ने की बारी आ गयी है।।
अब नये शीरे से कहानी रचेगी शक्ति।
न खैरात में जायेगी न हार मानेगी।।
सर उठाके जिएगी ।
सर उठाके मरेगी।।
– पूजा दवे शुक्ल