गीरते हैं ठोकरों से मगर टूटते नहीं
आंखो से गीरने वाले कभी उठते नहीं
देकर खूशी का हमको दिलासा निबाहका
तनहा तरब का हम भी मजा लुटते नहीं
नजरों से दुर करके अब ये सितम हुवा
लम्हात बे कली के बढे खूटते नहीं
होता पता ये हमको मुंह फेर लेंगे वोह
अपनी वफा से हमभी कभी मुडते नहीं
जिनकी इनायतों के भरोसे चले थे हम
कैसा है हाल अपना वो अब पूछते नहीं
मन का दिया जलाके हवा बन गये वोआज
हम टीम टीमाटे लौ की दफा ढुढते नहीं
होंगे सफर मे तनहा गर जानते मासूम
साथी सफर का उनको कभी पुजते नहीं
मासूम मोडासवी