आज जब सिर पर घूमता एक वायरस हमारी मौत बनकर बैठ गया तब हम समझें कि हमें क्वारेंटाईन होना चाहिये, मतलब हमें ‘‘सूतक’’ से बचना चाहिये। यह वही ‘सूतक’ है जिसका भारतीय संस्कृति में आदिकाल से पालन किया जा रहा है!
👉 हमारे यहॉ बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मॉ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।
👉 हमारे यहॉ कोई मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।
👉 हमारे यहॉ शव का दाह संस्कार करते है, जो लोग अंतिमयात्रा में जाते हैं उन्हे सबको सूतक लगती है, वह अपने घर जाने के पहले नहाते हैं, फिर घर में प्रवेश मिलता है।
👉 हम मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, मलविसर्जन के बाद नहाते हैं तब शुद्ध मानते हैं।
👉 हम जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर कर देते हैं।
👉 हमने सदैव होम हवन किया, समझाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता है।
👉 हमने आरती को कपूर से जोड़ा, हर दिन कपूर जलाने का महत्व समझाया ताकि घर के जीवाणु मर सकें।
👉 हमने वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किये। हमने मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियॉ लगाई जिनकी ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं।
👉 हमने घर में पैर धोकर अंदर जाने को महत्व दिया और भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोये।
👉 हमने मेले लगा दिये कुंभ और सिंहस्थ के सिर्फ शुद्ध जल से स्नान करने के लिय, और बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया ।
👉 हम थे जिन्होने दूर से हाथ जोडक़र अभिवादन को महत्व दिया ।
👉 हम तो उत्सव भी मनाते हैं तो मंदिरों में जाकर, सुन्दरकाण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करके।
👉 हमने होली जलाई कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हविष्य सामग्री सब कुछ सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये।
👉 हम नववर्ष व नवरात्री मनायेंगे, 9 दिन घरों-घर आहूतियॉ छोड़ी जायेंगी, वातावरण की शुद्धी के लिये।
👉 *हम हैं जो दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं।
👉 अरे हम तो हर दिन कपड़े भी धोकर पहनते हैं।
👉 हम उन जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो हमारे शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं।
आज हमें गर्व होना चाहिऐ हम ऐसी देव संस्कृति में जन्में हैं जहॉ ‘‘सूतक’’ याने क्वारेंटाईन का महत्व है। यह हमारी जीवन शैली हैं।