जन्माष्टमी का त्योहार उत्तर प्रदेश सहित पूरे देशभर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शुभ मानते हुए इस बार जन्माष्टमी 2020 की तारीख को लेकर कई मत हैं। कुछ लोगो का कहना है कि जन्माष्टमी 11 अगस्त, मंगलवार की है। जबकि अन्य बुद्धिजीवियों का मत है कि जन्माष्टमी 12 अगस्त को है। हालांकि, 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना श्रेष्ठ रहेगा। मथुरा और द्वारका में 12 अगस्त को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। जिसको लेकर अभी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
दो दिनों को लेकर उलझन में है लोग
दरअसल ये मत स्मार्त और वैष्णवों के विभिन्न मत होने के कारण तिथियां अलग-अलग बताई जा रही हैं। भक्त दो प्रकार के होते हैं – स्मार्त और वैष्णव। स्मार्त भक्तों में वह भक्त हैं जो गृहस्थ जीवन में रहते हुए जिस प्रकार अन्य देवी- देवताओं का पूजन, व्रत स्मरण करते हैं। उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण का भी पूजन करते हैं। जबकि वैष्णवों में वो भक्त आते हैं जिन्होंने अपना जीवन भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया है। वैष्णव श्रीकृष्ण का पूजन भगवद्प्राप्ति के लिए करते हैं।
स्मार्त भक्तों का मानना है कि जिस दिन तिथि है उसी दिन जन्माष्टमी मनानी चाहिए। स्मार्तों के मुताबिक अष्टमी 11 अगस्त को है। जबकि वैष्णव भक्तों का कहना है कि जिस तिथि से सूर्योंदय होता है पूरा दिन वही तिथि होती है। इस अनुसार अष्टमी तिथि में सूर्योदय 12 अगस्त को होगा। मथुरा वृन्दावन और द्वारका में 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। जबकि उज्जैन, जगन्नाथ पुरी और काशी में 11 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा।
अष्टमी तिथि आरम्भ – 11 अगस्त 2020, मंगलवार, सुबह 09 बजकर 06 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त – 12 अगस्त 2020, बुधवार, सुबह 11 बजकर 16 मिनट तक
जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के अनुसार इस साल जन्माष्टमी के दिन कृतिका नक्षत्र लगा रहेगा। साथ ही चंद्रमा मेष राशि मे और सूर्य कर्क राशि में रहेगा। कृतिका नक्षत्र में राशियों की इस ग्रह दशा के कारण वृद्धि योग भी बन रहा है। आचार्यों ने 12 अगस्त यानी वैष्णव जन्माष्टमी के दिन का शुभ समय बताया है। उनके अनुसार बुधवार की रात 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक पूजा का शुभ समय है। इसलिये 12 अगस्त को ही जन्माष्टमी मनाये
जन्माष्टमी के दिन कैसे करे पूजा
हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक जन्माष्टमी को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। महीनों पहले से भक्त अपने भगवान के जन्मोत्सव को मनाने की तैयारियां शुरू कर देते हैं। अधर्म का नाश करने और मानवता के कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देवकी की कोख से जन्म लिया था। इस उपलक्ष्य में भक्त उपवास रखकर और मंगल गीत गाकर भगवान कृष्ण का लड्डू गोपाल के रूप में जन्म करवाते है
पूजन सामिग्री
भगवान कृष्ण की पूजा सामग्री में एक खीरा, एक चौकी, पीला साफ कपड़ा, बाल कृष्ण की मूर्ति, एक सिंहासन, पंचामृत, गंगाजल, दही, शहद, दूध, दीपक, घी, बाती, धूपबत्ती, गोकुलाष्ट चंदन, अक्षत (साबुत चावल), तुलसी का पत्ता, माखन, मिश्री, भोग सामग्री।
श्रृंगार सामग्री
बाल गोपाल के जन्म के बाद उनके श्रृंगार के लिए इत्र, कान्हा के नए पीले वस्त्र, बांसुरी, मोरपंख, गले के लिए वैजयंती माता, सिर के लिए मुकुट, हाथों के लिए कंगन रखें।
बाल गोपाल का जन्म रात में 12 बजे के बाद होगा। सबसे पहले आप दूध से उसके बाद दही, फिर घी, फिर शहद से स्नान कराने के बाद गंगाजल से अभिषेक किया जाता है, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। स्नान कराने के बाद पूरे भक्ति भाव के साथ एक शिशु की तरह भगवान के लड्डूगोपाल स्वरूव को लगोंटी अवश्य पहनाएं। जिन चीजों से बाल गोपाल का स्नान हुआ है, उसे पंचामृत बोला जाता है। पंचामृत को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। फिर भगवान कृष्ण को नए वस्त्र पहनाने चाहिए।
भगवान के जन्म के बाद के मंगल गीत भी गाएं। कृष्णजी को आसान पर बैठाकर उनका श्रृंगार करना चाहिए। उनके हाथों में कंगन, गले में वैजयंती माला पहनाएं। फिर उनके सिर पर मोरपंख लगा हुआ मुकुट पहनाएं और उनकी प्यारी बांसुरी उनके पास रख दें। अब उनको चंदन और अक्षत लगाएं और धूप-दीप से पूजा करनी चाहिए। फिर माखन मिश्री के साथ अन्य भोग की सामग्री अर्पण करें। ध्यान रहे, भोग में तुलसी का पत्ता जरूर होना चाहिए। भगवान को झूले पर बिठाकर झुला झुलाएं और नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गाएं। साथ ही रातभर भगवान की पूजा करनी चाहिए।
आचार्य चन्द्रेश उपाध्याय गीत गोविंद कुटीर वृन्दावन मथुरा